प्राकृतिक चिकित्सा
प्राकृतिक उपचारक चिकित्सा पद्धती :
प्राकृतिक चिकित्सा :
(1) सूर्य-बाष्पस्नान :- अथर्ववेद में कहा गया है कि सूर्योदय के समय सूर्य की लाल किरणों के प्रकाश में खुले शरीर बैठने से हृदय रोगों तथा पीलिया के रोग में लाभ होता है। प्राकृतिक चिकित्सा में आन्तरिक रोगों को ठीक करने के लिये सिरपर गीला तौलिया रखकर धूप में बैठकर आगे पीछे धूप ली जाती है ताकी , सूर्य की किरणें शरीर के प्रत्येक हिस्से पर पड़े। 15 से 25 मिनट तक सूर्य स्नान के बाद पसीना आने पर ठंडे पानी से स्नान करने के बाद थोड़ा आराम करना होता है ।
(2) प्रार्थना :- विभिन्न प्रार्थनाएं हमें बल देती हैं, संबल देती हैं, क्योंकि प्रार्थनाएं हमें पवित्र बनाती हैं। * हमारे शरीर को डिटॉक्सीफिकेशन करती हैं यानी उसे निर्विषीकरण की प्रक्रिया से गुजारती हैं। इससे हमारा शरीर स्वस्थ, पवित्र, प्रफुल्लित और तरोताजा होता है। प्रार्थनाएं हमें सिखाती हैं कि हम ऊर्जा कैसे हासिल करें।
(३) वमन :- वमन कि इस क्रिया में विभिन्न औषधीय काथ(काढा )उचित मात्रा में पिलाकर ,उससे उल्टी(वमन) कराई जाती है iजीससे शरीर के अंदर बसे विषद्रव्य भरी मात्र में बाहर निकाल आते है |
(4) जल – नेती : – जल चिकित्सा द्वारा शरीर की डिटॉक्सिफिकेशन (detoxification) करके अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकाला जाता है। यह चिकित्सा अकड़ी हुई मांसपेशियों को सही करने में सहयोग करती है। जल चिकित्सा से शरीर की पाचन क्रिया और चयापचय दर में वृद्धि होती है।
(5) कटिस्नान:- कटिस्नान के लिए एक विशेष टब में पानी इस प्रकार भरते हैं कि रोगी के तब बैठने पर पानी का तल रोगी की नाभि तक आ जाए। रोगी के दोनों पैर टब के बाहर चौकी पर हों तथा पीठ टब के पिछले भाग से लगी रहे । अब एक छोटे तौलिए से नाभि पेडू को एक ओर से दूसरी ओर धीरे धीरे मलें ।