पंचकर्म चिकित्सा
’पंचकर्म ‘ यह आयुर्वेदिक चिकित्सा का एक अभिन्न अंग है जो,हमारे मन एवं शरीर को भली-भाती तंदुरुस्ती देता है । पंचकर्म को ‘शोधन ‘ नाम से भी जाना जाता है ।
इसमे शरीर के अंदर उद्दीपित हुवे वात,पित्त और कफ को शरीर के बाहर निकलकर हमारे शरीर व्यवस्था को संतुलित बनाये रखता है ।
पंचकर्म उपचारक चिकित्सा पद्धती :
पंचकर्म चिकित्सा :
(1) पादाभ्यंग:- आयुर्वेद के अनुसार, हमारे शरीर में लगभग 107 मर्म होते हैं। प्रत्येक पैर में 5 मर्म स्थिति होते हैं, जिनमें कई तंत्रिका अंत भी होते हैं। पादाभ्यंग की मदद से पैरों में स्थित मर्मों से नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकल जाती है, जिससे हमारा शरीर पुनर्जीवित हो जाता है। नियमित रूप से पैरों की मालिश करने से तंत्रिका तंत्र स्वस्थ रहता है, जिसके परिणामस्वरूप आपके समग्र स्वास्थ्य में सुधार होता है।
(2) रक्त–मोक्षण :- इस उपचार पद्धती में किसी शस्त्र अथवा जलौका द्वारा शरीर के अंदर बसे दुषित रक्त को बाहर निकाला जाता है |
(3) नेत्र-चिकित्सा :- आंखों पर पैक का आवेदन नेत्रश्लेष्मलाशोथ, नेत्रगोलक के हैमरेज, खुजली, एलर्जी, अपवर्तन के कम होने के दोष जैसे निकट दृष्टि और दूरदृष्टि की तरह त्रुटियों के मामलों में उपयोगी है, और विशेष रूप से मोतियाबिंद में, जिसमें यह नेत्रगोलक के तनाव को कम करने में मदद करता है।
(4) नस्य :- इस चिकित्सा में में पानी से नाक की सफाई की जाती है, जिससे आपको साइनस, सर्दी- जुकाम, प्रदूषण से बचाया जा सकता है। इसे करने के लिए नमकीन गुनगुने पानी का इस्तेमाल किया जाता है। इस क्रिया में पानी को नेति पात्र की मदद से नाक के एक छिद्र से डाला जाता है और दूसरे से निकाला जाता है। फिर इसी क्रिया को दूसरे नॉस्ट्रिल से किया जाता है।
(5) पोटली मसाज :- पोटली मसाज एक ऐसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति है, जो कुछ खास जड़ी बूटियों के साथ फायर और वॉटर एलिमेंटस को मिलाकर तैयार किया जाता है। शरीर पर की जाने वाले गर्म पोटली की मालिश बंद पोर्स का ओपन करने का काम करती है। इसके अलावा मसल्स को रिलैक्स रखती है।
(6) योग-निद्रा :- इस चिकित्सा में ,कंबल को जमीन पर बिछाएं और शवासन (पीठ के बल लेटना) में लेट जाएं। आंखों को बंद कर लें। शुरू में गहरी श्वास लेते हुए धीरे-धीरे सामान्य अवस्था में आएं। इसके बाद आपको अपने मन व मस्तिष्क को शांत करना होगा और दिमाग में चलने वाले सभी विचारों को भूल जाना होगा।